वली-अल-आख़िर-अज़-ज़माँ | وَلِی اَلآخِر اَلزَمَاں
ख़ातिम-अल-अउलिया (समानार्थक)
आख़िरी ज़माने का वली अल्लाह। (शाब्दिक अर्थ)
क़यामत तक की वलायत की मुहर। (आम अर्थ)
सामान्य धारणा
“वली-अल-आख़िर-अज़-ज़माँ” एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है “आख़िरी ज़माने का अल्लाह का वली” या अंग्रेज़ी में “Latter Day Saint”। इस्लामी इशरतुल्लाही (अंतिम समय या आख़िरी दिनों का अध्ययन) में यह धारणा एक विशेष रूहानी या धार्मिक शख़्सियत को दर्शाती है, जिसके बारे में माना जाता है कि वह दुनिया के अंत के क़रीब या क़यामती दौर में प्रकट होगा।
“वली-अल-आख़िर-अज़-ज़माँ” का ख़याल ख़ास तौर पर कुछ इस्लामी परंपराओं और सूफ़ी विश्वासों में बहुत अहम माना जाता है। अक्सर यह उस यक़ीन से जुड़ा होता है कि एक नेक और रूहानी तौर पर ऊँचे दर्जे का शख़्स ऐसे वक़्त में वापस आएगा जब हालात बुरी तरह बिगड़ जाएँगे, और वह इंसानियत को नेकी, इंसाफ और ईमान की तरफ़ ले जाएगा।
ऐसी ही धारणा इस्लाम की कई परंपराओं में पाई जाती है:
- अल-महदी: सुन्नी इस्लाम में अल-महदी के आने का यक़ीन है, जो एक सही राह पर चलने वाला और इंसाफ पसंद रहनुमा होगा, जो आख़िरी ज़माने में आकर इंसाफ और नेकी क़ायम करेगा। अल-महदी का आना आख़िरी ज़माने में ही माना जाता है ताकि वह इंसाफ क़ायम करे और मोमिनों का नेतृत्व करे।
- सूफ़ी परंपरा: सूफ़ी सिलसिले और अहेले-तसव्वुफ़ अकसर इस धारणा की अपनी-अपनी व्याख्याएँ रखते हैं, और कई औलिया और रूहानी रहनुमाओं को “वली-अल-आख़िर-अज़-ज़माँ” की मिसाल के तौर पर देखते हैं, यह उनके अपने विश्वास और परंपराओं पर निर्भर करता है।
यह याद रखना ज़रूरी है कि “वली-अल-आख़िर-अज़-ज़माँ” के बारे में ख़ास विश्वास और व्याख्याएँ इस्लाम के अलग-अलग फिरक़ों और परंपराओं में काफ़ी अलग-अलग हो सकती हैं। आमतौर पर यह धारणा एक रूहानी रहनुमा या क़ायद की उम्मीद पर आधारित होती है, जो संकट के वक़्त इंसानियत को सही रास्ते पर ले जाएगा, मगर इसकी तफ़्सीलें और व्याख्याएँ अलग-अलग हो सकती हैं।
हमारे सिलसिले में इसका अर्थ
हज़रत बाबा ताजुद्दीन औलिया (रहमतुल्लाह अलैहि) नागपुर, भारत से, अपने मुरीदों के दरमियान “वली-अल-आख़िर-अज़-ज़माँ” के तौर पर बहुत माने जाते हैं। यह विश्वास उनके ज़िंदगी और तालीमात के गहरे असर पर आधारित है। हज़रत बाबा ताजुद्दीन औलिया (रहमतुल्लाह अलैहि) अपनी रूहानी रहनुमाई और करामात (रूहानी इलाज) के लिए बहुत मशहूर हैं, जिसका कई चश्मदीदों ने बयान किया है। तसव्वुफ़ के रास्ते पर चलने वाले, ख़ासकर ताजी सिलसिले के ज़रिए, उन्हें एक ऐसे इलाही रहनुमा के रूप में देखते हैं जो रूहानी हलचल के वक़्त प्रकट होते हैं। उनका पैग़ाम मोहब्बत, रहमदिल और मज़हबी व समाजी इत्तेहाद पर आधारित है, जो आज के दौर की मज़हबी और समाजी तफ़रीक़ों में बहुत अहमियत रखता है। उनका जारी असर और मुरीदों में गहरी अकीदत इस बात का सुबूत है कि वह “वली-अल-आख़िर-अज़-ज़माँ” की हैसियत से इंसानियत को कठिन समय में रूहानियत और इत्तेहाद की तरफ़ ले जा रहे हैं।
इसके अलावा, यह भी ध्यान देने की बात है कि हज़रत बाबा ताजुद्दीन औलिया (रहमतुल्लाह अलैहि) हज़रत इमाम असकरी (रज़ियल्लाहु तआला अन्हु) की नस्ल से हैं। इस्लामी आख़िर-ज़मानी तफ़सीलों में यह कहा गया है कि अल-महदी भी इसी नस्ल से होंगे। इसका मतलब यह नहीं कि हज़रत बाबा ताजुद्दीन औलिया (रहमतुल्लाह अलैहि) खुद अल-महदी हैं, मगर इस बात की मज़बूत संभावना और ताल्लुक़ है कि अल-महदी का उनसे या उनके सूफ़ी सिलसिले से कोई अहम रिश्ता हो सकता है, जो उनके रूहानी विरसे को एक और गहराई देता है।