बैयत | بیعَت
संक्षेप में, यह एक ऐसा वचन (प्रतिज्ञा) है जो एक व्यक्ति किसी दूसरे के हाथों करता है। उदाहरण के लिए, एक सूफ़ी शेख (पीर) के हाथों वफ़ादारी की प्रतिज्ञा लेना — उनका सम्मान करना, उन्हें मार्गदर्शक मानना, और उनके ज़रिए यह सीखना कि पैगंबर मुहम्मद ﷺ और अल्लाह के करीब कैसे पहुँचा जा सकता है। इस प्रक्रिया में व्यक्ति सूफ़ी सिलसिला (धार्मिक परंपरा) का हिस्सा बनता है। यह समझना भी आवश्यक होता है कि इस सूफ़ी शेख के माध्यम से असल में यह वचन अल्लाह से किया जा रहा होता है। (औपचारिक विवरण)
इस प्रतिज्ञा के पीछे की सुन्नत की शुरुआत बैयअत अल-रिज़वान | بِيعَة اَلرِّضوان से होती है।
सुन्नत का आधार यह है कि हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा ﷺ ने लगभग 1400 सहाबा को अपने हाथ पर बैअत करने के लिए बुलाया था। सहाबा ने उनके हाथ पर अपने हाथ रखे — यह प्रतिज्ञा “रिज़वान के पेड़” के नीचे हुई थी।۔ इस बैअत के बाद, अल्लाह ने सूरह अल-फ़तह (48:10) की यह आयत नाज़िल की: “(ऐ हबीब!) जो लोग आपसे बैअत करते हैं, वे वास्तव में अल्लाह से बैअत कर रहे होते हैं। अल्लाह का हाथ उनके हाथों के ऊपर (आपके हाथ के रूप में) है। जो कोई अपनी बैअत तोड़ेगा, वह अपने ही नुकसान के लिए ऐसा करेगा। और जो कोई अल्लाह से किए गए वादे को पूरा करेगा, अल्लाह उसे महान इनाम से नवाज़ेगा।” (संदर्भ)